MidReal Story

Someone is anonymous

Scenario:रात काफी बीत चुकी थी। पूरे शहर पर जैसे किसी ने कोई जादू कर नींद की चादर बिछा दी हो, वैसी निस्तब्धता फैली थी। इमारतों के कोनों से ठंडी हवा धीमे से सरसराते हुए चल रही थी, जैसे किसी के कान में कोई पुराना रहस्य फुसफुसा रही हो। राजवीर अपनी आलीशान कोठी के दरवाज़े पर पहुँचा। उसके चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी। दिनभर की मीटिंग्स, तनाव और अकेलेपन का बोझ उसकी चाल में झलक रहा था। उसने दरवाज़ा खोला, और एक ठंडी, लगभग निर्जीव सी हवा उसका स्वागत करने आगे बढ़ी। हर ओर अंधेरा ही अंधेरा... "सो गई होगी शायद..." उसने नाक के नीचे ही बुदबुदाते हुए लाइट्स ऑन कीं। धीमा उजाला कमरे में फैल गया। उसने जूते उतारे और सीधे अपनी रूम की ओर बढ़ा। मगर कुछ ही देर में, पेट में उठती भूख उसे किचन की ओर खींच लाई... लेकिन वहाँ — न कोई तवा गर्म, न कोई बर्तन चढ़ा हुआ। "फिर वही नाटक... कभी तबीयत, कभी बहाने... अब और नहीं!" उसके जबड़े भींच गए। आँखों की नसें तन गईं। "बहुत हुआ अब... अब दिखाता हूँ उसे, कि मैं बस नाम का पति नहीं..." अब उसके कदम तेजी से ऊपरी मंज़िल की ओर बढ़ने लगे। लेकिन जैसे ही उसने कॉरिडोर में कदम रखा — एक अजीब आवाज़ उसके कानों तक पहुँची... "आह... आहह... स्स्स..." — साँसों की एक अजीब सी लय... कभी धीमी, कभी गहरी... राजवीर ठिठक गया। "क्या...? किसी के साथ है ये?" उसका चेहरा सख्त हो गया। "किसी से अफेयर चल रहा है इसका? आज... आज तो रंगेहाथ पकड़ता हूँ इसे!" अब उसके कदम और भी सतर्क हो गए। वह धीरे-धीरे उस कमरे की तरफ बढ़ा जहाँ से आवाज़ आ रही थी। दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था... उसने हल्के हाथों से उसे और ढकेला और अंधेरे में झाँका। पूरा कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था... लेकिन कोने में, एक मद्धम रौशनी में कुछ नजर आ रहा था... एक औरत... निर्वस्त्र... घुटनों के बल बैठी हुई। और वह औरत कोई और नहीं, सिया थी। उसके बगल में एक सुनहरा लैम्प जल रहा था, और वह एक अजीब हालत में थी। एक हाथ हवा में — जैसे किसी की कमर थामे हुए... और दूसरा हाथ मुट्ठी की तरह भींचा हुआ। राजवीर की साँस अटक गई। सिया का सिर जैसे किसी अदृश्य शरीर की ओर झुका हुआ था... जैसे वह कुछ मुँह में लेकर कर रही हो... और तभी — एक पल के लिए — राजवीर को सिया के मुँह से कुछ सफेद, चिपचिपा तरल नीचे गिरता हुआ दिखा... लेकिन वहाँ कोई और नहीं था। सिया अकेली थी। मगर उसकी हर हरकत... जैसे दो जिस्मों के बीच कुछ हो रहा हो। वह किसी छुअन को महसूस कर रही थी। हर हलचल... किसी के स्पर्श की प्रतिक्रिया। राजवीर का खून जैसे जमने लगा। अचानक, सिया ज़मीन से खिसकती हुई पलंग पर चढ़ गई — एकदम उसी मुद्रा में, जैसे किसी स्त्री-पुरुष के बीच संबंध बनते हैं। उसने अपने दोनों पैर फैला दिए, आँखें बंद कीं और हौले से मुस्कराई... और फिर — एक झटका! उसकी कमर ऊपर उठी, और होठों से एक लंबी सिसकी निकली... राजवीर डर से काँपने लगा। और तभी... वो दिखाई दिया। सिया के ऊपर — एक पुरुष जैसी परछाईं। लेकिन वह इंसान नहीं था। उसका शरीर बर्फ जैसा सफेद, ठंडा, पारदर्शी। नग्न। और उसकी आँखें... पूरी तरह काली। गहरी और निर्जीव। राजवीर को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे उठाकर बर्फ के पानी में फेंक दिया हो। वह धीरे-धीरे पीछे मुड़ा... हर कदम जैसे ज़मीन पर बर्फ टूटने की आवाज़ कर रहा था। सीढ़ियाँ उतरते वक्त भी उसका मन उसी दृश्य में उलझा हुआ था। "ये क्या था...? कोई इंसान...? कोई आत्मा...? या कुछ और डरावना?" वह सोचता रहा... और ऊपर से आती सिया की सिसकियाँ अब भी रुकी नहीं थीं — बल्कि अब वो और भी तीव्र, और विचलित कर देनेवाली थीं। राजवीर ने अपना सिर झुका लिया। "सिया... सिंघानिया खानदान की बहू... सच में किसी आत्मा की बाँहों में...?" वही सिया — जिससे उसकी शादी ज़बरदस्ती करवाई गई थी। न प्यार, न सम्मान। सिर्फ़ नफ़रत और कड़वाहट। उसका दिल तो आज भी शनाया में अटका था। और सिया...? सिर्फ़ एक बोझ। लेकिन आज... आज की रात ने सब कुछ उलट-पुलट कर रख दिया था।
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रात काफी बीत चुकी थी। पूरे शहर पर जैसे किसी ने कोई जादू कर नींद की चादर बिछा दी हो, वैसी निस्तब्धता फैली थी। इमारतों के कोनों से ठंडी हवा धीमे से सरसराते हुए चल रही थी, जैसे किसी के कान में कोई पुराना रहस्य फुसफुसा रही हो। राजवीर अपनी आलीशान कोठी के दरवाज़े पर पहुँचा। उसके चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी। दिनभर की मीटिंग्स, तनाव और अकेलेपन का बोझ उसकी चाल में झलक रहा था। उसने दरवाज़ा खोला, और एक ठंडी, लगभग निर्जीव सी हवा उसका स्वागत करने आगे बढ़ी। हर ओर अंधेरा ही अंधेरा... "सो गई होगी शायद..." उसने नाक के नीचे ही बुदबुदाते हुए लाइट्स ऑन कीं। धीमा उजाला कमरे में फैल गया। उसने जूते उतारे और सीधे अपनी रूम की ओर बढ़ा। मगर कुछ ही देर में, पेट में उठती भूख उसे किचन की ओर खींच लाई... लेकिन वहाँ — न कोई तवा गर्म, न कोई बर्तन चढ़ा हुआ। "फिर वही नाटक... कभी तबीयत, कभी बहाने... अब और नहीं!" उसके जबड़े भींच गए। आँखों की नसें तन गईं। "बहुत हुआ अब... अब दिखाता हूँ उसे, कि मैं बस नाम का पति नहीं..." अब उसके कदम तेजी से ऊपरी मंज़िल की ओर बढ़ने लगे। लेकिन जैसे ही उसने कॉरिडोर में कदम रखा — एक अजीब आवाज़ उसके कानों तक पहुँची... "आह... आहह... स्स्स..." — साँसों की एक अजीब सी लय... कभी धीमी, कभी गहरी... राजवीर ठिठक गया। "क्या...? किसी के साथ है ये?" उसका चेहरा सख्त हो गया। "किसी से अफेयर चल रहा है इसका? आज... आज तो रंगेहाथ पकड़ता हूँ इसे!" अब उसके कदम और भी सतर्क हो गए। वह धीरे-धीरे उस कमरे की तरफ बढ़ा जहाँ से आवाज़ आ रही थी। दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था... उसने हल्के हाथों से उसे और ढकेला और अंधेरे में झाँका। पूरा कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था... लेकिन कोने में, एक मद्धम रौशनी में कुछ नजर आ रहा था... एक औरत... निर्वस्त्र... घुटनों के बल बैठी हुई। और वह औरत कोई और नहीं, सिया थी। उसके बगल में एक सुनहरा लैम्प जल रहा था, और वह एक अजीब हालत में थी। एक हाथ हवा में — जैसे किसी की कमर थामे हुए... और दूसरा हाथ मुट्ठी की तरह भींचा हुआ। राजवीर की साँस अटक गई। सिया का सिर जैसे किसी अदृश्य शरीर की ओर झुका हुआ था... जैसे वह कुछ मुँह में लेकर कर रही हो... और तभी — एक पल के लिए — राजवीर को सिया के मुँह से कुछ सफेद, चिपचिपा तरल नीचे गिरता हुआ दिखा... लेकिन वहाँ कोई और नहीं था। सिया अकेली थी। मगर उसकी हर हरकत... जैसे दो जिस्मों के बीच कुछ हो रहा हो। वह किसी छुअन को महसूस कर रही थी। हर हलचल... किसी के स्पर्श की प्रतिक्रिया। राजवीर का खून जैसे जमने लगा। अचानक, सिया ज़मीन से खिसकती हुई पलंग पर चढ़ गई — एकदम उसी मुद्रा में, जैसे किसी स्त्री-पुरुष के बीच संबंध बनते हैं। उसने अपने दोनों पैर फैला दिए, आँखें बंद कीं और हौले से मुस्कराई... और फिर — एक झटका! उसकी कमर ऊपर उठी, और होठों से एक लंबी सिसकी निकली... राजवीर डर से काँपने लगा। और तभी... वो दिखाई दिया। सिया के ऊपर — एक पुरुष जैसी परछाईं। लेकिन वह इंसान नहीं था। उसका शरीर बर्फ जैसा सफेद, ठंडा, पारदर्शी। नग्न। और उसकी आँखें... पूरी तरह काली। गहरी और निर्जीव। राजवीर को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे उठाकर बर्फ के पानी में फेंक दिया हो। वह धीरे-धीरे पीछे मुड़ा... हर कदम जैसे ज़मीन पर बर्फ टूटने की आवाज़ कर रहा था। सीढ़ियाँ उतरते वक्त भी उसका मन उसी दृश्य में उलझा हुआ था। "ये क्या था...? कोई इंसान...? कोई आत्मा...? या कुछ और डरावना?" वह सोचता रहा... और ऊपर से आती सिया की सिसकियाँ अब भी रुकी नहीं थीं — बल्कि अब वो और भी तीव्र, और विचलित कर देनेवाली थीं। राजवीर ने अपना सिर झुका लिया। "सिया... सिंघानिया खानदान की बहू... सच में किसी आत्मा की बाँहों में...?" वही सिया — जिससे उसकी शादी ज़बरदस्ती करवाई गई थी। न प्यार, न सम्मान। सिर्फ़ नफ़रत और कड़वाहट। उसका दिल तो आज भी शनाया में अटका था। और सिया...? सिर्फ़ एक बोझ। लेकिन आज... आज की रात ने सब कुछ उलट-पुलट कर रख दिया था।

राजवीर

He is the head of a powerful family and a wealthy businessman. He is ambitious, ruthless, and conflicted. He was forced to marry Sia against his will, under pressure from his family and their past feud with her family. Despite this, he finds himself drawn to her unsettling presence. He struggles with his own dark nature and the influence of his family's expectations. His interactions with Sia are filled with tension and unspoken resentment, revealing the complex emotions between them.

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सिया (सिंघानिया खानदान की बहू)

She is the daughter of a rival family and was married to Rajveer under duress. She is mysterious, seductive, and manipulative. Her presence in Rajveer's life creates an intense and unsettling atmosphere. She seems to exert a hypnotic influence over him, stirring feelings of desire and guilt. Her use of dark magic adds to the eerie ambiance of their encounters. Sia's intentions are unclear, but her ability to unsettle Rajveer suggests a deep connection despite their troubled history.

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रात काफी बीत चुकी थी।
पूरे शहर पर जैसे किसी ने कोई जादू कर दिया था, नींद की चादर बिछा दी थी, वैसी निस्तब्धता फैली थी।
इमारतों के कोनों से ठंडी हवा धीमे से सरसराते हुए चल रही थी, जैसे किसी के कान में कोई पुराना रहस्य फुसफुसा रही हो।
मैं अपनी आलीशान कोठी के दरवाज़े पर पहुँचा।
मेरे चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी।
दिनभर की मीटिंग्स, तनाव और अकेलेपन का बोझ मेरी चाल में भारीपन ला रहा था।
मैंने दरवाज़ा खोला, और एक ठंडी, लगभग निर्जीव सी हवा मेरा स्वागत करने आगे बढ़ी।
हर ओर अंधेरा ही अंधेरा...
"सो गई होगी शायद..." मैंने नाक के नीचे ही बुदबुदाते हुए लाइट्स ऑन कीं।
धीमा उजाला कमरे में फैल गया।
मैंने जूते उतारे, और सीधे अपनी रूम की ओर बढ़ा।
Someone is anonymous
रास्ते में किचन पड़ा, तो मेरी नजर वहाँ जा टिकी।
मैंने सोचा, "कुछ खाने को बना लेता हूँ..."
लेकिन जब मैं किचन में गया, तो वहाँ न तो खाने की कोई खुशबू थी, न ही कोई गर्मी...
स्टोव पर कोई बर्तन नहीं था।
मैंने चूल्हे को छुआ, तो ठंडा था।
मेरी आँखों में गुस्सा उबाल ले रहा था।
मैंने अपनी उँगलियाँ काउंटर पर रखीं, और धीरे-धीरे उसे सहलाने लगा।
उस पर धूल जमी हुई थी।
मेरी साँसें तेज होने लगीं।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और गहरी साँस ली।
Someone is anonymous
"शान्या, तुम्हारी याद आ रही है..."
मैंने फुसफुसाते हुए कहा।
मेरी पत्नी, शान्या, हमेशा रात के खाने के लिए कुछ बनाती थी।
उसके हाथों में जादू था, जो हर व्यंजन में प्यार भर देता था।
लेकिन अब... अब सब बदल गया है। मैंने अपनी आँखें खोलीं और एक गिलास पानी लिया।
Someone is anonymous
मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था, लेकिन मैंने उसे नियंत्रित करने की कोशिश की।
पानी पीते समय, मेरी नजर कमरे के चारों ओर घूमती रही।
सबकुछ साफ-सुथरा था, लेकिन एक अजीब सूनापन महसूस हो रहा था।
रेफ्रिजरेटर की धीमी-धीमी आवाज़ और बाहर सड़क पर दूर-दूर तक आती-जाती गाड़ियों की आवाज़... बस यहीं तक सुनाई देता था।
मैंने गिलास रखा और धीरे-धीरे अपने स्टडी रूम की ओर बढ़ा।
सारा घर अंधेरे में डूबा हुआ था, लेकिन मेरी आँखें अब इस अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थीं।
मैंने स्टडी रूम का दरवाज़ा खोला, और अंदर जाकर लाइट ऑन कर दी।
रूम में एक छोटा-सा डेस्क था, जिस पर एक छोटी-सी टेबल लैंप जल रही थी।
उसके आसपास कुछ किताबें और पुराने दस्तावेज़ बिखरे हुए थे।
मैंने डेस्क के पास रखी एक पुरानी लकड़ी की अलमारी खोली, और उसमें से एक बंडल निकाला।
वह बंडल पुराने पत्रों का था, जिन्हें मैंने अपनी पत्नी, शान्या, से प्राप्त किया था।
उन पत्रों को पढ़ते हुए, मुझे हमारे प्यार की यादें ताज़ा हो गईं।
शान्या ने उन पत्रों में अपने प्यार को बहुत ही खूबसूरत तरीके से व्यक्त किया था। मैंने उन पत्रों को अपने हाथ में पकड़ लिया और उन्हें धीरे-धीरे पढ़ने लगा।
हर पत्र में, शान्या ने अपने प्यार को बहुत ही सच्चाई से व्यक्त किया था।
Someone is anonymous
उसने लिखा, "मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, और तुम्हारे बिना जीवन अधूरा है।"
उसने आगे लिखा, "तुम्हारी आँखों में देखकर, मैं अपना भविष्य देखती हूँ।"