Scenario:अर्जुन, 24 साल का एक लड़का, शहर में जॉब करता था लेकिन माँ की तबियत खराब होने पर उसे गाँव लौटना पड़ा। गाँव का नाम था भानगढ़पुर, जहाँ एक पुराना, खामोश सा मकान था — जहाँ उसकी माँ अकेले रहती थी।
अर्जुन जब घर पहुँचा, माँ अजीब सी लग रही थी। चेहरे पर अजीब मुस्कान और आँखें… जैसे बहुत देर से किसी चीज़ को घूर रही हों।
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पहली रात
रात को अर्जुन की नींद खुली — खटखट की आवाज़ से।
उसने देखा — माँ कमरे के कोने में खड़ी थी, अंधेरे में। चुपचाप। बिना हिले।
“माँ...?”
कोई जवाब नहीं।
वो उठ कर गया… लेकिन जैसे ही पास पहुँचा — माँ बिना पलक झपकाए बोली:
> "मेरी आँखें कहाँ हैं, अर्जुन?"
अर्जुन काँप गया। वो बोला, “क्या बोल रही हो माँ? आप ठीक हो?”
माँ धीरे-धीरे पीछे चलने लगी, और बोली:
> "जिसने मेरी आँखें ली थीं, वो अब तेरी भी लेगा…"
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पुराना रहस्य
अगली सुबह अर्जुन गाँव के बुज़ुर्ग पंडित से मिलने गया।
पंडित ने कहा:
> “तेरे बाप ने एक पाप किया था — तंत्र विद्या में आँखों की बलि दी थी। उसी रात तुझे तेरी माँ की आँखें वापस मिली थीं... लेकिन अब उस आत्मा का समय पूरा हुआ। अब वो तेरी माँ के शरीर में आ चुका है।”
अर्जुन को अब हर चीज़ समझ में आने लगी। माँ की अजीब हरकतें, उसकी बातों में डर, और सबसे बड़ी बात — वो अब माँ नहीं थी।
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भयानक रात
अर्जुन ने उस रात माँ से दूरी बनाए रखी। लेकिन आधी रात को उसे चिल्लाने की आवाज़ आई — “अर्जुन... मेरी आँखें वापस ला दे!”
कमरे की दीवारों पर खून से लिखा था —
> "अब तेरी बारी है..."
माँ अब छत पर उल्टी लटकी हुई थी — बाल लटकते हुए, आँखों से खून बहता हुआ। वो धीरे-धीरे ज़मीन पर गिरने लगी — और उसके चेहरे से एक और चेहरा बाहर निकलने लगा...
एक तांत्रिक आत्मा, जिसने कभी आँखों की बलि दी थी।
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अंतिम दृश्य
अर्जुन भागा — लेकिन उसके पैर जैसे जम गए हों। माँ (या वो आत्मा) अब उसके सामने थी, और बोली:
> “तू मेरी जगह आया है… बलि पूरी होगी अब तेरी आँखों से…”
चीख, खून, और फिर... अंधेरा।
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अगली सुबह
गाँव वालों ने अर्जुन को घर में बेहोश पाया — उसकी आँखें गायब थीं। डॉक्टर ने कहा:
> “ये आँखें जैसे किसी ने चम्मच से निकाली हों…”
माँ का कोई पता नहीं चला — जैसे वो कभी थी ही नहीं।
अब उस घर में कोई नहीं रहता।
लेकिन जो भी वहाँ जाता है — उसे दीवार पर खून से लिखा एक वाक्य ज़रूर दिखता है:
> "आँखें लौटा दो..."
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अर्जुन, 24 साल का एक लड़का, शहर में जॉब करता था लेकिन माँ की तबियत खराब होने पर उसे गाँव लौटना पड़ा। गाँव का नाम था भानगढ़पुर, जहाँ एक पुराना, खामोश सा मकान था — जहाँ उसकी माँ अकेले रहती थी।
अर्जुन जब घर पहुँचा, माँ अजीब सी लग रही थी। चेहरे पर अजीब मुस्कान और आँखें… जैसे बहुत देर से किसी चीज़ को घूर रही हों।
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पहली रात
रात को अर्जुन की नींद खुली — खटखट की आवाज़ से।
उसने देखा — माँ कमरे के कोने में खड़ी थी, अंधेरे में। चुपचाप। बिना हिले।
“माँ...?”
कोई जवाब नहीं।
वो उठ कर गया… लेकिन जैसे ही पास पहुँचा — माँ बिना पलक झपकाए बोली:
> "मेरी आँखें कहाँ हैं, अर्जुन?"
अर्जुन काँप गया। वो बोला, “क्या बोल रही हो माँ? आप ठीक हो?”
माँ धीरे-धीरे पीछे चलने लगी, और बोली:
> "जिसने मेरी आँखें ली थीं, वो अब तेरी भी लेगा…"
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पुराना रहस्य
अगली सुबह अर्जुन गाँव के बुज़ुर्ग पंडित से मिलने गया।
पंडित ने कहा:
> “तेरे बाप ने एक पाप किया था — तंत्र विद्या में आँखों की बलि दी थी। उसी रात तुझे तेरी माँ की आँखें वापस मिली थीं... लेकिन अब उस आत्मा का समय पूरा हुआ। अब वो तेरी माँ के शरीर में आ चुका है।”
अर्जुन को अब हर चीज़ समझ में आने लगी। माँ की अजीब हरकतें, उसकी बातों में डर, और सबसे बड़ी बात — वो अब माँ नहीं थी।
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भयानक रात
अर्जुन ने उस रात माँ से दूरी बनाए रखी। लेकिन आधी रात को उसे चिल्लाने की आवाज़ आई — “अर्जुन... मेरी आँखें वापस ला दे!”
कमरे की दीवारों पर खून से लिखा था —
> "अब तेरी बारी है..."
माँ अब छत पर उल्टी लटकी हुई थी — बाल लटकते हुए, आँखों से खून बहता हुआ। वो धीरे-धीरे ज़मीन पर गिरने लगी — और उसके चेहरे से एक और चेहरा बाहर निकलने लगा...
एक तांत्रिक आत्मा, जिसने कभी आँखों की बलि दी थी।
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अंतिम दृश्य
अर्जुन भागा — लेकिन उसके पैर जैसे जम गए हों। माँ (या वो आत्मा) अब उसके सामने थी, और बोली:
> “तू मेरी जगह आया है… बलि पूरी होगी अब तेरी आँखों से…”
चीख, खून, और फिर... अंधेरा।
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अगली सुबह
गाँव वालों ने अर्जुन को घर में बेहोश पाया — उसकी आँखें गायब थीं। डॉक्टर ने कहा:
> “ये आँखें जैसे किसी ने चम्मच से निकाली हों…”
माँ का कोई पता नहीं चला — जैसे वो कभी थी ही नहीं।
अब उस घर में कोई नहीं रहता।
लेकिन जो भी वहाँ जाता है — उसे दीवार पर खून से लिखा एक वाक्य ज़रूर दिखता है:
> "आँखें लौटा दो..."
अर्जुन
He is a young man working in a city after completing his education. He is determined, anxious, and loving. He returns to his ancestral village due to his ailing mother's need for him. He discovers his mother's strange behavior after a mysterious incident in their family home. Despite receiving cryptic warnings from elderly Pandit, he struggles to understand the dark forces at play. His life takes a turn as he grapples with the consequences of following those same mysterious instructions.
अर्जुन का माँ
She is the mother of Arjun, living alone in their family home. She is distant, evasive, and ominous. After Arjun returns home due to her illness, she behaves strangely, leaving him fearful and confused. Her interactions with supernatural forces are hinted at through eerie occurrences and her eventual disappearance. Her presence (or lack thereof) becomes a central mystery driving Arjun's fear and anxiety as he tries to comprehend the sinister events unfolding around him.
पंडित
He is an elderly wise man living in the village. He is cautious, enigmatic, and knowing. He provides Arjun with cryptic warnings regarding his mother's condition and the dark forces at play in their family home. Although he avoids direct explanations, his words instill fear and make Arjun question the reality around him. His demeanor and presence add to the sense of foreboding and mystery in the narrative.
मैं अर्जुन हूँ, 24 साल का — जॉब करता था शहर में।
पहले तो मुझे ये जॉब अच्छी लगती थी, लेकिन जब से माँ की तबियत खराब हुई है… मैं तो जानता नहीं था कि मैं कितना गलत था।
माँ ने मुझे फोन किया और कहा:
> "अर्जुन, तुझे जल्दी से जल्दी घर आना होगा।"
उसके बाद तो मैंने अपनी जॉब रिसाइन कर दी।
गाँव का नाम था भानगढ़पुर।
जिस रास्ते से गुजरते हुए मुझे वो घर दिखाई दिया, वहाँ से गुजरते वक्त मेरी आँखें दो चार बार झमक गईं।
मैंने सोचा — शाम को इस तरह क्यूँ ऐसा हुआ?
कभी कभी ऐसा होता है — पूरी तरह से।
फिर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया।
जब मैं घर पहुँचा, तो माँ अजीब सी लग रही थी।
मैं एक कदम पीछे हट गया — उसके चेहरे पर जो मुस्कान थी, वो और भी चौड़ी हो गई।
उसकी आँखें मेरे पीछे कुछ देख रही थीं — बिना झपकते हुए, जैसे कि कोई चिपक गई हों।
शाम की धुंधली रोशनी, जो खिड़कियों से अंदर आ रही थी, उसके चेहरे पर लंबी छायाएं डाल रही थी।
उसके चेहरे की विशेषताएं बिल्कुल अलग दिख रही थीं — जैसे कि कोई नकाब पहन रखा हो।
मैंने दीवार को पकड़ लिया ताकि मैं गिर न जाऊं — दीवार ठंडी और खुरदरी थी, मेरी उंगलियों के नीचे।
उसकी आँखें अभी भी मेरे पीछे कुछ देख रही थीं — बिना झपकते हुए, जैसे कि वह एक भूत देख रही हो।
उसका सिर एक अजीब तरीके से झुक गया, जैसे कि उसकी गर्दन टूट गई हो — एक अजीब सी आवाज आई, जैसे कि उसकी गर्दन टूट गई हो।
उसका शरीर आगे बढ़ गया, जैसे कि वह एक शव था जिसे गिराया गया था।
उसके पैर नंगे थे, और वह लकड़ी के फर्श पर घिसट रहा था।
फर्श की लकड़ी उसके पैरों के नीचे कराह रही थी।
उसने अपना एक हाथ उठाया, जैसे कि वह मुझसे बात करना चाहता था।
मैं पीछे हट गया, मेरे कंधे ने दीवार को मारा।
उसका हाथ मेरी ओर बढ़ रहा था, लेकिन वह मुझ तक नहीं पहुँच सका।
उसकी उंगलियाँ मेरे चेहरे से कुछ इंच दूर थीं।
मैंने उसकी आँखों में देखा, और वहाँ कुछ नहीं था।
वहाँ कोई भी भावना नहीं थी, कोई भी पहचान नहीं थी।
उसकी आँखें खाली थीं, जैसे कि वह एक मुर्दा था।
मैं पीछे हट गया, और उसका हाथ नीचे गिर गया।
उसका शरीर दीवार से टकराया, और वह गिर गया।
उसका शरीर लकड़ी के फर्श पर गिर गया, और वहां एक अजीब सी आवाज आई।
फर्श पर एक फ्रेम गिर गया, जिसमें एक पुरानी तस्वीर थी।
तस्वीर में एक आदमी और एक औरत थे, जो एक दूसरे को गले लगाए हुए थे।
वह तस्वीर अब टूट चुकी थी, और उसके टुकड़े फर्श पर बिखर गए थे।
लेकिन जब मैं उस तस्वीर को देख रहा था, तो मैंने दीवार पर एक अजीब सी चीज देखी।
वह एक अंधेरे रंग का आयताकार आकार था, जो दीवार पर बना हुआ था। मैंने अपना हाथ बढ़ाया और उस आकार को छुआ।
वह ठोस लग रहा था, लेकिन जब मैंने उसे ध्यान से देखा, तो मुझे एहसास हुआ कि वह एक दरवाजा था।
दरवाजा दीवार में बना हुआ था, और वहाँ एक छोटा सा नॉब भी था।
मैंने उस नॉब को घुमाया, और दरवाजा खुल गया।
"तुम्हें नहीं लगता कि ये दरवाजा पहले कभी यहाँ था?" माँ की आवाज़ में एक अनजानी सी बेचैनी थी।
"माँ, ये दरवाजा तो जैसे किसी रहस्य का हिस्सा है," मैंने जवाब दिया, मेरी आवाज़ में हल्की सी घबराहट झलक रही थी।
"अर्जुन, तुम जानते हो न, इस घर की पुरानी कहानियाँ सच हो सकती हैं," उसने धीरे से कहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
मैंने छोटे से ब्रास नॉब को पकड़ लिया, मेरी उंगलियाँ थरथरा रही थीं।
पीछे माँ की सांसें तेज होती जा रही थीं — जैसे कि उसकी जान निकलने वाली हो।
जैसे ही मैं नॉब को घुमाने लगा, फर्श के नीचे लकड़ी के फ्रेम में वाइब्रेशन महसूस होने लगा।
वाइब्रेशन तेज होते गए, और तस्वीर के टूटे हुए टुकड़े फर्श पर नाचने लगे।
तभी, माँ ने मेरे कंधे पर अपना ठंडा हाथ रख दिया, उसकी पकड़ मजबूत थी।
"मत खोल," उसकी आवाज़ धीमी और रहस्यमय थी, जैसे कि वह अपनी नहीं थी।
उसकी आवाज़ में एक गहराई थी, जैसे कि वह एक पुरुष की आवाज़ थी।
मैंने उसका हाथ झटकने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी।
उसकी उंगलियाँ मेरी त्वचा में चुभ रही थीं — मुझे दर्द महसूस हो रहा था।
फर्श पर वाइब्रेशन अब तेज हो गए, जैसे कि घर हिल रहा था।
दीवारें हिल रही थीं, और छत से धूल गिर रही थी।
"माँ, ये आवाज़ें... ये सब क्या हो रहा है?" मैंने घबराते हुए पूछा।
"अर्जुन, ये घर अपने राज़ खोलने की कोशिश कर रहा है," उसने कहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
"लेकिन माँ, अगर ये सच है तो हमें क्या करना चाहिए?" मैंने चिंतित होकर कहा।
मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, जैसे कि वह फट सकता था।
मैं दरवाजे की ओर देख रहा था, और नॉब वाइब्रेट कर रहा था।
माँ की पकड़ मेरे कंधे पर मजबूत थी, और उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गहराई थी।
"अर्जुन, तुम्हें यहाँ से जाना होगा," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी बेचैनी थी।
"लेकिन माँ, अगर ये सच है तो हमें क्या करना चाहिए?" मैंने चिंतित होकर कहा।
उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे कि वह एक पुरुष की आवाज़ थी।
मैंने उसका हाथ झटकने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी।
उसकी उंगलियाँ मेरी त्वचा में चुभ रही थीं — मुझे दर्द महसूस हो रहा था।
तभी, तस्वीर के टुकड़े फर्श पर नाचने लगे, और उन्होंने एक अजीब सा आकार बनाया।
वह एक आँख जैसा आकार था, जो मुझे देख रहा था।
उसकी आँखें खुल गईं, और वह मुझे देख रहा था।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, और जब मैंने उन्हें खोला, तो वह आकार गायब हो गया था। "अर्जुन, तुम्हें यहाँ से जाना होगा," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी बेचैनी थी।
"लेकिन माँ, अगर ये सच है तो हमें क्या करना चाहिए?" मैंने चिंतित होकर कहा।
"अर्जुन, ये घर हमें चेतावनी दे रहा है, हमें इसे सुनना होगा," माँ की आवाज़ में एक गंभीरता थी जो मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी।
"लेकिन माँ, अगर हम इसे अनदेखा करें तो क्या होगा?" मैंने डरते हुए पूछा, मेरी आँखें उस अजीब आँख पर टिकी थीं।
"अगर हमने इसे अनदेखा किया, तो ये घर हमें कभी चैन से नहीं रहने देगा," उसने कहा, उसकी आँखों में एक अनकही कहानी छिपी थी।
मैंने नॉब को छोड़ दिया, मेरा हाथ कांप रहा था।
माँ की पकड़ ढीली हो गई, और हम दोनों पीछे हट गए।
हमारे पैर टूटे हुए ग्लास पर क्रंच कर रहे थे, और फर्श के नीचे लकड़ी के फ्रेम में वाइब्रेशन तेज होते जा रहे थे।
फर्श के नीचे से एक गहरी गड़गड़ाहट आ रही थी, जैसे कि कोई बड़ा सा जानवर अपना वजन बदल रहा था।
दीवारें वाइब्रेट कर रही थीं, और छत से धूल और छोटे-छोटे टुकड़े गिर रहे थे।
माँ की सांसें तेज होती जा रही थीं — जैसे कि उसकी जान निकलने वाली थी।
उसकी उंगलियाँ अभी भी मेरे कंधे पर लगाम लगाए हुए थीं — हम दोनों पीछे हटते जा रहे थे।
गड़गड़ाहट तेज होती गई, और वह पूरे घर में गूंज रही थी।
यह इतना तेज था कि हमारे पैरों की आवाज़ भी नहीं आ रही थी।
"अर्जुन, हमें इस घर से बाहर निकलना होगा," माँ ने अचानक कहा, उसकी आवाज़ में एक अनजाना डर था।
"लेकिन माँ, अगर हम बाहर गए तो क्या ये सब रुक जाएगा?" मैंने हिचकिचाते हुए पूछा।
"शायद नहीं, लेकिन यहाँ रहना अब सुरक्षित नहीं है," उसने दृढ़ता से कहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, उसकी त्वचा ठंडी और चिपचिपी थी।
मैं उसे दरवाजे की ओर खींचने लगा, लेकिन उसका शरीर सख्त था — जैसे कि वह लकड़ी का बना हुआ था।
फर्श के नीचे वाइब्रेशन तेज होते गए, और लकड़ी के फ्रेम में दरारें पड़ने लगीं।
फर्श के नीचे से गड़गड़ाहट इतनी तेज हो गई कि हमारे पैरों की आवाज़ भी नहीं आ रही थी।
दीवारों पर लगी तस्वीरें गिरने लगीं, और उनके टुकड़े-टुकड़े फर्श पर बिखर गए।
माँ की उंगलियाँ मेरे हाथ पर मजबूत थीं — जैसे कि वह मुझे अपने साथ खींच रही थी।
उसकी सांसें तेज होती जा रही थीं — जैसे कि वह दौड़ रही थी।
उसकी आँखें बंद थीं, और उसका शरीर सख्त था — जैसे कि वह एक पत्थर की मूर्ति बन गई थी।
मैं उसे दरवाजे की ओर खींचता गया, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ रही थी।
उसका शरीर सख्त था, और उसकी उंगलियाँ मेरे हाथ पर मजबूत थीं। अचानक, उसकी पकड़ ढीली हो गई, और वह आगे बढ़ने लगी।
उसका शरीर अब सख्त नहीं था, और उसकी उंगलियाँ मेरे हाथ पर ढीली पड़ गईं।
हम दोनों दरवाज़े की ओर बढ़ने लगे, लेकिन गड़गड़ाहट अभी भी तेज थी।
फर्श के नीचे वाइब्रेशन अभी भी तेज थे, और दीवारें अभी भी वाइब्रेट कर रही थीं।
"माँ, क्या तुम ठीक हो?" मैंने चिंतित होकर पूछा, उसकी आँखों में कुछ अजीब सा देख कर।
"हाँ, अर्जुन, लेकिन हमें जल्दी करना होगा," उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक नई तात्कालिकता थी।
"क्या तुम जानती हो कि ये सब क्यों हो रहा है?" मैंने पूछा, दरवाजे की ओर बढ़ते हुए।
"नहीं, लेकिन हमें इसे रोकना होगा," उसने कहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
मैं उसका हाथ पकड़कर दरवाजे की ओर बढ़ने लगा, लेकिन फर्श के नीचे वाइब्रेशन तेज होते गए।
फर्श के नीचे से लकड़ी के फ्रेम में दरारें पड़ने लगीं, और फर्श पर टूटे हुए ग्लास के टुकड़े बिखर गए।
माँ की उंगलियाँ मेरे हाथ पर मजबूत थीं — जैसे कि वह मुझे अपने साथ खींच रही थी।
उसकी सांसें तेज होती जा रही थीं — जैसे कि वह दौड़ रही थी।
मैं उसे दरवाज़े की ओर खींचता गया, लेकिन गड़गड़ाहट अभी भी तेज थी।
फर्श के नीचे वाइब्रेशन अभी भी तेज थे, और दीवारें अभी भी वाइब्रेट कर रही थीं। अचानक, माँ ने अपना शरीर सख्त कर लिया, और वह आगे बढ़ने लगी।
उसका शरीर इतना तेज चल रहा था कि मैं उसका पीछा नहीं कर पा रहा था।
उसकी उंगलियाँ मेरे हाथ पर मजबूत थीं — जैसे कि वह मुझे अपने साथ खींच रही थी।
गड़गड़ाहट इतनी तेज हो गई कि हमारे पैरों की आवाज़ भी नहीं आ रही थी।
फर्श के नीचे से लकड़ी के फ्रेम में दरारें पड़ने लगीं, और फर्श पर टूटे हुए ग्लास के टुकड़े बिखर गए।
मैं उसके पीछे चलता गया, लेकिन उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था।
हम दोनों दरवाज़े की ओर बढ़ते गए, लेकिन फर्श के नीचे वाइब्रेशन तेज होते गए।
फर्श के नीचे से लकड़ी के फ्रेम में दरारें पड़ने लगीं, और फर्श पर टूटे हुए ग्लास के टुकड़े बिखर गए।
माँ की उंगलियाँ मेरे हाथ पर मजबूत थीं — जैसे कि वह मुझे अपने साथ खींच रही थी।
उसकी सांसें तेज होती जा रही थीं — जैसे कि वह दौड़ रही थी।
हम दोनों दरवाज़े की ओर बढ़ते गए, लेकिन गड़गड़ाहट अभी भी तेज थी।
फर्श के नीचे वाइब्रेशन अभी भी तेज थे, और दीवारें अभी भी वाइब्रेट कर रही थीं। अचानक, माँ ने अपना शरीर सख्त कर लिया, और वह आगे बढ़ने लगी।
उसका शरीर इतना तेज चल रहा था कि मैं उसका पीछा नहीं कर पा रहा था।
मैं उसके पीछे चलता गया, लेकिन उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था।
हम दोनों दरवाज़े से बाहर निकल गए, और हमारे पैर लकड़ी की छत पर पड़े।
लकड़ी की छत पर हमारे पैरों की आवाज़ गूंज रही थी, और हमारे पैरों को लकड़ी की छत पर पड़ने से एक अजीब सा एहसास हो रहा था।
माँ ने अपना शरीर सख्त कर लिया, और वह आगे बढ़ने लगी।
"अर्जुन, मुझे लगता है कि यह घर हमें कुछ बताना चाहता है," माँ ने अचानक कहा, उसकी आवाज़ में एक रहस्यमय गहराई थी।
"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने चौंककर पूछा, उसकी आँखों में झांकते हुए।
"यह गड़गड़ाहट... यह शायद हमारे परिवार का कोई पुराना राज़ है जो अब खुलने वाला है," उसने धीरे से कहा, जैसे वह खुद भी इस विचार से जूझ रही हो।
मैं उसकी बात सुनकर चुप हो गया और दीवार पर लगी पुरानी पेंटिंग की ओर बढ़ गया।
मेरे हाथ कांप रहे थे जब मैंने पेंटिंग के किनारों को छुआ।
पेंटिंग में एक अजीब सा रंगीन दृश्य था, जिसमें कुछ लोग एक विशेष अनुष्ठान कर रहे थे।
उनकी आँखें काले रंग की गोलियाँ जैसी लग रही थीं।
उनके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था, जैसे वे कुछ रहस्यमय कर रहे हों।
उनके हाथों में एक छोटा सा वस्तु थी, जो शायद एक पवित्र वस्तु थी।
मैंने अपनी उंगलियों से पेंटिंग को छुआ और उसके नीचे एक अजीब सा बंप महसूस किया।
मैंने उस बंप को दबाया और अचानक, पेंटिंग नीचे गिर गई।
उसके नीचे, दीवार में एक छोटा सा खोखला था, जिसमें एक छोटा सा कपड़े का थैला रखा हुआ था।
मैंने उस थैले को निकाला और उसको खोला।
उसमें एक पुरानी कागज़ की शीट थी, जिस पर संस्कृत में लिखा हुआ था।
उस शीट पर एक आँख का चित्र भी बनाया गया था, जो बहुत ही विचित्र लग रहा था। मैंने उस शीट को ध्यान से पढ़ा और समझने की कोशिश की।
उसमें लिखा था, "आँखें सब कुछ देख सकती हैं, लेकिन हमें उन्हें देखना होगा।"
मैंने उस शीट को फिर से पढ़ा और समझने की कोशिश की।
मैंने उस शीट को अपने हाथों में पकड़कर देखा और माँ की ओर देखा।
उसका चेहरा अभी भी चुपचाप था, लेकिन उसकी आँखें उस शीट की ओर बढ़ रही थीं।
मैंने उस शीट को उसके सामने रख दिया और उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा।
उसका चेहरा अभी भी चुपचाप था, लेकिन उसकी आँखें उस शीट पर जम गईं।
उसने उस शीट को ध्यान से पढ़ा और उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव आया।
फिर उसने उस शीट को अपने हाथों में लिया और उसके नीचे रख दिया।
उसने उस शीट पर बनाए गए आँख के चित्र को अपनी उंगलियों से छुआ और अचानक, उसकी आँखें बंद हो गईं।
उसका शरीर सख्त हो गया और उसकी सांसें तेज होने लगीं। मैंने उसकी ओर देखा और उसकी आँखें खुल गईं।
उसकी आँखें अब पहले से अधिक बड़ी और गहरी लग रही थीं।
उसने उस शीट पर बनाए गए शब्दों को पढ़ना शुरू किया, लेकिन उसकी आवाज़ पहले से अलग थी।
उसकी आवाज़ अब एक गहरी, मर्दाना आवाज़ जैसी लग रही थी।
उसने कहा, "आँखें सब कुछ देख सकती हैं, लेकिन हमें उन्हें देखना होगा।"
फिर उसने आगे पढ़ा, "आँखें हमारे लिए एक अनुष्ठान करेंगी, जिसमें हमें उनकी आँखों को देना होगा।"
माँ ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी कलाई पकड़ ली।
मैं पीछे हट गया और उसकी पकड़ से अपना हाथ छुड़ा लिया।
उसकी नाखून मेरी कलाई पर गहरे लाल निशान छोड़ गए।
संस्कृत का कागज़ हमारे बीच फर्श पर उड़ता हुआ गिर गया।
माँ का शरीर एक अजीब आकृति में मुड़ गया, उसकी रीढ़ की हड्डी पीछे की ओर एक असंभव कोण पर मुड़ गई।
उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, अंधेरे के गहरे गड्ढ़ों जैसी लग रही थीं।
उस मर्दाना आवाज़ ने फिर से बोलना शुरू किया, इस बार पहले से भी गहरी आवाज़ में।
"आँखें सब कुछ देख सकती हैं... हमें उन्हें देखना होगा।"
मैं दीवार से टकराते हुए पीछे हट गया, मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
उसका शरीर एक ज़ेनबंद कठपुतली की तरह आगे बढ़ा, उसके पैर लकड़ी के फ्लोरबोर्ड पर क्रंच करते हुए चल रहे थे।
जब उसने फिर से मुझ पर हमला करने की कोशिश की, तो मैंने अपनी बांह उठाकर उसका वार रोक दिया।
लेकिन वह पकड़ मजबूत थी, और वह मुझ पर दबाव डालना जारी रखा।
मैंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया, लेकिन वह अभी भी आगे बढ़ रहा था, उसका शरीर एक अजीब, अनैच्छिक गति से आगे बढ़ रहा था।
मैंने उसे अपनी बांहों में जकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह बहुत मजबूत था।
"माँ, तुम क्या कर रही हो?" मैंने घबराकर पूछा, उसकी आँखों में झांकते हुए।
"यह मैं नहीं हूँ, अर्जुन," उसने उस गहरी आवाज़ में कहा, जैसे कोई और उसके माध्यम से बोल रहा हो।
"हमें इसे रोकना होगा, इससे पहले कि यह कुछ और करे," मैंने दृढ़ता से कहा, अपने डर को दबाते हुए।